Hi friends, announcing my latest book of poetry in Hindi-Urdu “Tu Hi Piya”, published an Amazon Kindle Books on 29 November 2020!
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हस्ती मुबारक (Hasti Mubarak) by संदीप साइलस “दीप”
हस्ती मुबारक
मेरे लहू में बहने लगी है, तेरी हस्ती मुबारक
मेरा दिल बस गया है, तेरी बस्ती मुबारक।
ना रही मुझे चाह की मिले बेशुमार शोहरत
तेरे आने से मिल गयी, मुझे किश्ती मुबारक।
ना दिखा तू हसीन मंजर, ना महलों की दौलत
इबादत-खाना है ख़ामोश, तिशनगी मुबारक।
अर्जमंद शहंशाह से कहो, मिट्टी की पुकार सुने
हर शख़्स पहुँच जाता है, उस ज़मीं मुबारक।
दिल रख के फिरता हूँ, तेरी मोहब्बतों का सागर
अल्फ़ाज़ मेरे है सुर की पहचान, मस्ती मुबारक।
जो भी पल उनकी मौजूदगी में, रह जाते हैं चुप
बने हैं लबरेज़ प्याला तनहा, दिल्लगी मुबारक।
खो गया जो उस जहाँ, रोयें क्यूँ, ग़म क्यूँ करें हम
मिल गयी मुझे रब्ब में, आज रहनुमाई मुबारक।
एक निगाह जो उठ के झुके, जाँ-निसार करें हम
आएगी उरूज पे अपनी भी, इत्तीफ़ाकी मुबारक।
सजता है वो रोज़ दुल्हन बन के, आएने के सामने
जिस को आस सताए है, वो ही है “दीप” मुबारक।
तिशनगी- thirst, longing; लबरेज़-overflowing
रिफ़ाक़त (Companionship) by संदीप साइलस “दीप”
रिफ़ाक़त
संदीप साइलस “दीप”
सहरा के हौसले भी थे, तेरी हिफ़ाज़त भी थी
आबला-पा हुए ज़रूर, तेरी रिफ़ाक़त भी थी।
दर्द भरे नग़मों जैसी ज़ीस्त जिए शब-ओ-रोज़
परेशान रहे ज़रूर, मगर तेरी अक़ीदत भी थी।
सच तो बहुत दिखे, ज़माने ने बे-आबरू किया
सर उठा के हम तो जी गए, तेरी निस्बत भी थी।
हैरत हुई बहुत से क़रीबियों को देख के बे-पर्दा
तेरे बनाए हुए प्यालों में मगर आदमियत भी थीं।
ये सब क्यूँ तूने दिखला दिया मुझे इतनी जल्दी
अभी तो मेरे कदम उठे ही थे, मासूमियत भी थी।
कोई ख़ास मंजर ज़रूर तू मुझे दिखाना चाहता है
तमाम दुशवारियों तेरी रहम-ए-इल्तिफ़ात भी थी।
दिल दुनिया रौनक़-ए-बहार आए, तेरी ख़बर आए
दूर से साथ निभाने की क्या तेरी सिफ़ाक़त भी थी।
बहुत से लोग खो दिए मैंने, रहगुज़र चलते-चलते
सब कुछ साफ़-साफ़ कहने की मेरी आदत भी थी।
रंग लिए मैंने पैरहन, मुफ़्लिसी में तेरे नाम से पिया
तेरे “दीप” को तुझसे बेतहाशा मोहब्बत भी थी।
रिफ़ाक़त- companionship; सहरा- desert, wilderness; आबला-ए-पा -blisters of feet; अक़ीदत – faith, attachment; बे-आबरू – dishonour; निस्बत- relation; दुशवारियाँ-difficulties; इल्तिफ़ात- kindness; सिफ़ाक़त- culture; पैरहन- dress; मुफ़लिसी-poverty
(Written: Delhi; 19 May 2020)
शौक़-ए-जीस्त Shauq-e-Zeest by संदीप साइलस “दीप”
शौक़-ए-जीस्त
संदीप साइलस “दीप”
तेरे शौक़-ए-जीस्त से भरा हूँ मैं
तेरी नज़रें इनायत को खड़ा हूँ मैं।
नौ-निहाल हुई दुनिया तेरी बरकत
तेरे सामने हाथ फैलाए खड़ा हूँ मैं।
कहते हैं तू सबका है दिल-निग़ार
तेरे दीदार को तरसता खड़ा हूँ मैं।
सुनते हैं तू दारा-दाता है, मसीहा है
एक साँस बदन में लिए खड़ा हूँ मैं।
तेरी आमद को तैय्यार हमेशा हूँ मैं
रौनक़-ए-इश्क़, रोशन खड़ा हूँ मैं।
तेरे चमन में ये कैसी शमशीर चली
इंसानियत की गुहार लिए खड़ा हूँ मैं।
बंद कर लीं हैं आँखें तेरे नुमाइंदों ने
इंसाँ के दिल का दर्द लिए खड़ा हूँ मैं।
हो गए हैं ख़ामोश तेरे बनाए हुए साज़
होठों पे हज़ारों नग़मे लिए खड़ा हूँ मैं।
इस अंधेरे को दूर, तो करना ही होगा
यक़ीन का “दीप” जलाए खड़ा हूँ मैं।
(Written: Delhi; 25 April 2020)
वक़्त का तुम… Waqt Ka Tum… by संदीप साइलस “दीप”
वक़्त का तुम…
संदीप साइलस “दीप”
वक़्त का तुम दम भरते हो, वक़्त किसका है
इंतिज़ार करते रहते हो, की ख़त किसका है।
मौसम-ए-बहार की रोज़ तुम राह तकते हो
दरख़्तों से बातें करते हो, परिंदा किसका है।
मन में लिए इख़्लास, क्या-क्या सम्भाले हो
तन्हाइयों में डूबे रहते हो, आसरा किसका है
ये कशिश क्या कभी ले आएगी तुम्हारा प्यार
तारों को गिनते रहते हो, आसमाँ किसका है।
उनकी रूह को ताज़ा, रुख़्सार हँसी रखते हो
असास हैं मज़बूत, उन्हें एहसास किसका है।
यूँ बात-बात आब-ए-दीदा होते हो, बेज़ार हो
कौन पोंछेगा बहते अश्क़, रूमाल किसका है।
आँखों में दास्ताँ, शरीर, हरारत लिए फिरते हो
मोहब्बत भरे लब हैं ख़ामोश, जिगर किसका है।
ख़ंजर-ए-इश्क़, लमहा-बा-लमहा धार रखते हो
खुद ही तो लहू-लुहान रहते हो, दिल किसका है।
चलो बयाबान में चलो “दीप”, वतन किसका है
तेरा हुआ तो आएगा, वरना ख़याल किसका है।
(Written: Delhi; 10 April 2020)
रब्ब की मर्ज़ी Rabb Ki Marzi by संदीप साइलस “दीप”
रब्ब की मर्ज़ी
संदीप साइलस “दीप”
वक़्त और शजर दोनो ही उतार देते हैं
लदे हुए ज़माने, ख़ामोश उतार देते हैं।
रब्ब की मर्ज़ी के आगे कौन खड़ा रहा
आसमानी फ़रमान कारवाँ उतार देते हैं।
अच्छे और बुरे का फ़र्क़ बेशक भूल गए
अज़ाब आते हैं तो शहंशाह उतार देते हैं।
ये ताज-ओ-तख़्त बहुत बेशक़ीमती हैं
वज़न नहीं संभला, तो होश उतार देते हैं।
आवाम के ज़ख़्म, किसी को दिखते नहीं
ये जब पकते हैं, सल्तनत उतार देते हैं।
मेरे दिल के दर्द, मेरी जाँ, कुछ ऐसे ही हैं
ये कलम से काग़ज़ पे, ख़ुदा उतार देते हैं।
तू नहीं मिलता तो दिल उदास सा रहता है
ज़मीन-ए-मोहब्बत हम धनक उतार देते हैं।
अपनी-अपनी रूह, ख़ुदाई से भर लो तुम
ज़ुल्मियों के लिबास भी ख़ुदा उतार देते हैं।
दरख़्त रखते हैं हरेक घोंसले को महफ़ूज़
दुआगो “दीप” रूहानियत को उतार लेते हैं।
(Written: Delhi; 17 April 2020)
प्यास… Thirst by संदीप साइलस “दीप”
प्यास…
संदीप साइलस “दीप”
दूर से प्यास बुझती, तो किसी को कहाँ लगती
पी–पी के अश्क़ तू जी गया, प्यास कहाँ लगती।
वो जिसकी तलब थी, नहीं मिला, तो इश्क़ रहा
मिल गया होता, तो इश्क़ की आग कहाँ लगती।
तँहा ना हुए होते, बाद–ए–सबा, सर्द कहाँ लगती
तसव्वुर में ना आते, जाँना की कशिश कहाँ लगती।
वो ग़र पास हुए होते, दिल–तिशनगी, कहाँ लगती
तीरगी के आलम सिवा, ख़्वाबों में लौ कहाँ लगती।
शब–ए–हिज्र, शुक्रिया, नीम–वा रोशनी कहाँ लगती
मेरी सूखी आँखो को, उनकी नमी कब कहाँ लगती।
वादा–ए–वफ़ा निभाया होता, ये ख़लिश कहाँ लगती
वो जुदा ना हुआ होता, ख़ुदा की आस कहाँ लगती।
ज़ख़्म–ए–दिल लिए फिरता हूँ, अब दवा कहाँ लगती
कुछ रखे ज़माने के लिए, वरना नुमाईशें कहाँ लगती।
अब ना हसरत–ए–शाम, ना ख़्वाहिशों से हमें काम
कोई आए ना आए, अब खामोशी भी कहाँ लगती।
एक बेगाने की आस “दीप” क्यूँ रखते हो अपने दिल
ख़ुदा की बारगाह में आओ, यहाँ प्यास कहाँ लगती।
(Written: Delhi; 30 March 2020)
रब्ब को कहा होता… संदीप साइलस “दीप”
रब्ब को कहा होता…
संदीप साइलस “दीप”
दर्द-ए-दिल को ए इंसां, तूने रब्ब को कहा होता
जिसका अक्स तू जमीं पे है, उसको कहा होता।
शिकस्ताह हाल फिरता है, एतबार किया होता
जिसने तुझे बनाया, उस रब्ब को पुकारा होता।
दस्त-ए-साक़ी ना लाए, वो जाम पिया होता
चाक-जिगर को अपने, ईमान से सिया होता ।
अह्ल-ए-किताब का कलाम, जो तूने सुना होता
रूह का परिंदा तेरा, रब्ब का नाम जिया होता।
चारागर का हक़ तूने, जो ख़ुदा को दिया होता
दुआ ने हर मर्ज़ में, दवा का काम किया होता।
कारवाँ-ए-हयात पे इतना फ़ख़्र ना किया होता
कभी तो रब्ब का भी, तूने एहतिराम किया होता।
इब्तिदा तो कर ली, तू इंतिहा को जिया होता
ख़ुदा की मोहब्बत का भी पैग़ाम लिया होता।
हद पे तू पहुँचता रहा, इख़्लास भी किया होता
जाने-अनजाने कभी वादा-ए-वफ़ा किया होता।
सामने गर तू होता, मैं तुझ को ही जिया होता
तू इश्क़ मेरा होता, मैं “दीप” तेरा ही होता।
Peace Anthem for the World by Sandeep Silas
Lyrics: Sandeep Silas; Singer: Pawni Pandey
I had been thinking for a long time that our beautiful world does not have a Peace Anthem, which can be universally accepted by the nations of the world and sung in schools and universities.
So I wrote the song, and many thanks to Akshat Pandey, my friend in Mumbai, who recorded it in the voice of his lovely and talented daughter, Pawni Pandey! Thanks Pawni, for making the Peace Anthem idea a possibility for our world and hearts!
Peace is what we want utmost if we have to preserve the human race on the planet!
PEACE ANTHEM
SANDEEP SILAS
There was a time
When the Earth was tranquil
And peace reigned around
Man lived in Eden
And Eve in his heart
Eve in his heart
The serpent of knowledge
Brought untold destruction
Hearts are now divided, homes are aflame
Lines now define frontiers
The fields are red
Are red with blood
See, now the rivers sigh
And the mountains silently cry
The oceans tremble with fear
Music is drowned, by the roar above
And toys have gone for guns
This is my land, those are my men
No one is equal, anymore
Anymore
We have everything
We have nothing
There are tears in every eye
Angels have also become shy
Children don’t play those innocent games
Ivy rushes up walls no more
Strange darkness follows every man
No one to stop and give a hand
Peace does not live in hearts
Not, live in hearts
So think of everyone
As your dear one
Kindle some warmth to last forever
Share the little you have with love
See, tender flowers bring you a promise every season
And the sky still shows a rainbow after the blinding rain
Spring, bursts from the autumns’ yellow
Green is the hand of the gardener
Look at the wonders of this beautiful world
And feel the magic living around you
Living around you
We have everything
We have nothing
There is so much peace hidden in every heart
The world can become one again
Say, that we’ll not live apart
Come let us wish for the healing rain
Turn the wheel as it must
Bring peace to every troubled heart
Peace to every heart
Peace to every heart
We have everything
We have everything
(Written: April 9, 2011)
तू लौ ख़ुशनुमा…by संदीप साइलस “दीप” Tu Lau Khushnuma…by Sandeep Silas “deep”
तू लौ ख़ुशनुमा…
संदीप साइलस “दीप”
तू लौ ख़ुशनुमा, मैं पतंगा तेरा
तुझको जियूँ तो, जल जाऊँ मैं ।
ये क्या राबता, कैसा है मेला
तुझको छू लूँ तो, खिल जाऊँ मैं ।
तू मदहोश है, मेरा खोया पिया
तुझको देखूँ तो, भर जाऊँ मैं ।
मेरा दिल तो तेरा, घर बन गया
तुझको पाऊँ तो, बस जाऊँ मैं ।
तेरा चर्चा रहा, वो ज़माना तेरा
गहमा-गहमी हो, तो डर जाऊँ मैं ।
मैं तो आयत तेरी, तू ईसा है मेरा
तुझको मिलने को, ललचाऊँ मैं ।
हर राह तेरी, हर जहां है तेरा
ले चला तू मुझे, कहाँ को जिया ।
ज़ुबान ने मेरी, आज शिकवा किया
ऐसा मिलना हुआ, तो मर जाऊँ मैं ।
तू लौ ख़ुशनुमा, मैं पतंगा तेरा
तुझको जियूँ तो, जल जाऊँ मैं ।
ये क्या राबता, कैसा है मेला
तुझको छू लूँ, तो खिल जाऊँ मैं ।
TU LAU KHUSHNUMA…
Sandeep Silas “deep”
Tu lau khushnuma, main patanga tera
Tujhko jiyun to, jal jaun main
Ye kya raabta, kaisa hai mela
Tujhko chhuu lun to, khil jaun main
Tu madhosh hai, mera khoya piya
Tujhko dekhun to, bhar jaun main
Mera dil to tera, ghar ban gaya
Tujhko paun to, bas jaun main
Tera charcha raha, wo zamana tera
Gehma-gehmi ho, to dar jaun main
Main to aayat teri, tu Isaa hai mera
Tujhko milne ko, lalchaun main
Har raah teri, har jahaan hai tera
Le chala tu mujhey, kahan ko jiya
Zubaan ne meri, aaj shikwa kiya
Aisa milna hua to, mar jaun main
Tu lau khushnuma, main patanga tera
Tujhko jiyun to, jal jaun main
Ye kya raabta, kaisa hai mela
Tujhko chhuu lun to, khil jaun main
(Written: Delhi; 29 November 2019; 10.10 pm -10.45 pm)