वक़्त का तुम…
संदीप साइलस “दीप”
वक़्त का तुम दम भरते हो, वक़्त किसका है
इंतिज़ार करते रहते हो, की ख़त किसका है।
मौसम-ए-बहार की रोज़ तुम राह तकते हो
दरख़्तों से बातें करते हो, परिंदा किसका है।
मन में लिए इख़्लास, क्या-क्या सम्भाले हो
तन्हाइयों में डूबे रहते हो, आसरा किसका है
ये कशिश क्या कभी ले आएगी तुम्हारा प्यार
तारों को गिनते रहते हो, आसमाँ किसका है।
उनकी रूह को ताज़ा, रुख़्सार हँसी रखते हो
असास हैं मज़बूत, उन्हें एहसास किसका है।
यूँ बात-बात आब-ए-दीदा होते हो, बेज़ार हो
कौन पोंछेगा बहते अश्क़, रूमाल किसका है।
आँखों में दास्ताँ, शरीर, हरारत लिए फिरते हो
मोहब्बत भरे लब हैं ख़ामोश, जिगर किसका है।
ख़ंजर-ए-इश्क़, लमहा-बा-लमहा धार रखते हो
खुद ही तो लहू-लुहान रहते हो, दिल किसका है।
चलो बयाबान में चलो “दीप”, वतन किसका है
तेरा हुआ तो आएगा, वरना ख़याल किसका है।
(Written: Delhi; 10 April 2020)