स्वीकार करो मेरी उपासना
स्वीकार करो, मेरी उपासना
मेरी माँ, मेरी माँ।
मैं प्रेम का सागर लिए बैठा
हृदय में तुम्हारी लाडली है
मन में आस, मैं लिए बैठा
नैनन बसी हुई वो प्यारी है।
मैं मनोकामना, हूँ लिए बैठा
मेरी शक्ति तुम्हारी भक्ति है
मैं अँसूँअन धार, लिए बैठा
तेरी शरण, मेरी आसक्ति है।
स्वीकार करो, मेरी उपासना
मेरी माँ, मेरी माँ।
मैं अनकही बात लिए बैठा
तेरी बेटी ही मेरी दुलारी है
मैं क्षमा याचना लिए बैठा
वो मेरी, जन्मो से, रानी है।
मैं सबरी दुनिया छोड़ बैठा
बस उसकी मुझे लालसा है
मैं तेजोमय रूप लिए बैठा
उसकी मुझे बहुत तमन्ना है।
स्वीकार करो, मेरी उपासना
मेरी माँ, मेरी माँ।
हाथों में तस्वीर मैं लिए बैठा
एक उम्मीद तेरे दर लगाई है
रूह की सच्चाई, लिए बैठा
मैंने प्यार की लौ, लगाई है।
मैं माथे पे तिलक, लिए बैठा
तेरी छाप, नैनों में सजाई है।
तेरी दया की आस लिए बैठा
मैंने जीवन रंगोली सजाई है।
स्वीकार करो, मेरी उपासना
मेरी माँ, मेरी माँ।
(Written : Delhi; 6 September 2021; 2.12 pm to 2.28 pm first two stanzas; rest from 6.51 pm to 7.25 pm)