Church of St. Catejan, Goa, India

Not many would know that a Church in India has been modelled on the architectural pattern of St. Peter’s Church in Rome.

Dating to the second half of the 17th century it was built by Italian Friars. Hiding by the River Mandovi near the Divar Island Ferry, it often goes unnoticed due to the importance of The Basilica. But, today I was determined to explore the mystique of this unique place of worship.

Other than the main Altar the side Chapels are also very beautiful in carving and precision. The paintings I found here must date to the very era when the Church was made and have lasted the vagaries of the tropical weather in Goa, especially the heavy monsoons.

We must preserve this cultural heritage at all costs as it is the very Idea of India.

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स्वीकार करो मेरी उपासना (Sweekaar Karo Meri Upaasna) by Sandeep Silas “deep”

स्वीकार करो मेरी उपासना

स्वीकार करो, मेरी उपासना
मेरी माँ, मेरी माँ।

मैं प्रेम का सागर लिए बैठा
हृदय में तुम्हारी लाडली है
मन में आस, मैं लिए बैठा
नैनन बसी हुई वो प्यारी है।

मैं मनोकामना, हूँ लिए बैठा
मेरी शक्ति तुम्हारी भक्ति है
मैं अँसूँअन धार, लिए बैठा
तेरी शरण, मेरी आसक्ति है।

स्वीकार करो, मेरी उपासना
मेरी माँ, मेरी माँ।

मैं अनकही बात लिए बैठा
तेरी बेटी ही मेरी दुलारी है
मैं क्षमा याचना लिए बैठा
वो मेरी, जन्मो से, रानी है।

मैं सबरी दुनिया छोड़ बैठा
बस उसकी मुझे लालसा है
मैं तेजोमय रूप लिए बैठा
उसकी मुझे बहुत तमन्ना है।

स्वीकार करो, मेरी उपासना
मेरी माँ, मेरी माँ।

हाथों में तस्वीर मैं लिए बैठा
एक उम्मीद तेरे दर लगाई है
रूह की सच्चाई, लिए बैठा
मैंने प्यार की लौ, लगाई है।

मैं माथे पे तिलक, लिए बैठा
तेरी छाप, नैनों में सजाई है।
तेरी दया की आस लिए बैठा
मैंने जीवन रंगोली सजाई है।

स्वीकार करो, मेरी उपासना
मेरी माँ, मेरी माँ।

(Written : Delhi; 6 September 2021; 2.12 pm to 2.28 pm first two stanzas; rest from 6.51 pm to 7.25 pm)

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दो सरीर, एक आत्मा (Do Sareer Ek Atmaan) by Sandeep Silas “Deep”

दो सरीर, एक आत्मा

दो सरीर, एक आत्मा
देख, अजूबा परमात्मा।

आकास में, सैकड़ों आत्मा
जिन्हें नाहीं मिले परमात्मा
बानी से झलके है, आत्मा
दो नैनन से बोले है आत्मा।

एक ही सोच, एक ही हिया
मैं हूँ दर्पण, तू मेरा है पिया
रोशनी देत है, एक ही दिया
चल सजनी घर अपने पिया।

तू गाए जा, गीत परमात्मा
माँ सुन रही है तुझे, आत्मा
सर्व बाधा का होगा ख़ात्मा
तय है हमारा मिलन आत्मा।

हो गया है मग़न तुझ में हिया
सुन ले पुकार, मन की पिया
सजाया पूजा का थाल हिया
तेरे लिए धड़कता मेरा जिया।

ना ख़ुशी है तेरे बिन, आत्मा
नाही जीवन बीते है, आत्मा
सब तार जुड़ गए हैं, आत्मा
तेरे लिए सब कुछ है, आत्मा।

दो सरीर, एक आत्मा
देख, अजूबा परमात्मा।

(Written: Goa; 7 October 2021; 8.59 am to 10.01 am)

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प्रियादीप PRIYADEEP (Hindi Edition)

Hi friends, announcing my latest book of poetry in Hindi-Urdu (Devanagari script) containing ghazals, nazams, geet and muktak’s published on Amazon Kindle on 30th July 2021 !

“Priyadeep” is the lamp of sweet love, the love that knows no barriers, no age, no language except pure love, sacred love, and love divine ! Love in complete surrender to the beloved !
Such love is designed by the caring Hand of God in the heavens. Such love celebrates the beloved in every mood, manner and time.
The poetry in Priyadeep lifts from one heart to the other and gets shaped by words in rhythm and melody. It is the sacred language of the heart, which only hearts in deep love can understand.
The verse can easily be transformed into songs, ghazals and nazms by an expert music composer.
Priyadeep is an offering of love !

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Tu Hi Piya, तू ही पिया by Sandeep Silas

Hi friends, announcing my latest book of poetry in Hindi-Urdu “Tu Hi Piya”, published an Amazon Kindle Books on 29 November 2020!

TU HI PIYA: तू ही पिया (Hindi Edition) by [Sandeep Silas]

https://www.amazon.in/dp/B08P9FY1CT/ref=sr_1_1?dchild=1&qid=1606715358&refinements=p_27%3ASandeep+Silas&s=digital-text&sr=1-1

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रिफ़ाक़त (Companionship) by संदीप साइलस “दीप”

 

रिफ़ाक़त
संदीप
साइलसदीप

सहरा के हौसले भी थे, तेरी हिफ़ाज़त भी थी
आबला-पा हुए ज़रूर, तेरी रिफ़ाक़त भी थी।

दर्द भरे नग़मों जैसी ज़ीस्त जिए शब-ओ-रोज़
परेशान रहे ज़रूर, मगर तेरी अक़ीदत भी थी।

सच तो बहुत दिखे, ज़माने ने बे-आबरू किया
सर उठा के हम तो जी गए, तेरी निस्बत भी थी।

हैरत हुई बहुत से क़रीबियों को देख के बे-पर्दा
तेरे बनाए हुए प्यालों में मगर आदमियत भी थीं।

ये सब क्यूँ तूने दिखला दिया मुझे इतनी जल्दी
अभी तो मेरे कदम उठे ही थे, मासूमियत भी थी।

कोई ख़ास मंजर ज़रूर तू मुझे दिखाना चाहता है
तमाम दुशवारियों तेरी रहम-ए-इल्तिफ़ात भी थी।

दिल दुनिया रौनक़-ए-बहार आए, तेरी ख़बर आए
दूर से साथ निभाने की क्या तेरी सिफ़ाक़त भी थी।

बहुत से लोग खो दिए मैंने, रहगुज़र चलते-चलते
सब कुछ साफ़-साफ़ कहने की मेरी आदत भी थी।

रंग लिए मैंने पैरहन, मुफ़्लिसी में तेरे नाम से पिया
तेरे “दीप” को तुझसे बेतहाशा मोहब्बत भी थी।

रिफ़ाक़त- companionship; सहरा- desert, wilderness; आबला-ए-पा -blisters of feet; अक़ीदत – faith, attachment; बे-आबरू – dishonour; निस्बत- relation; दुशवारियाँ-difficulties; इल्तिफ़ात- kindness; सिफ़ाक़त- culture; पैरहन- dress; मुफ़लिसी-poverty

(Written: Delhi; 19 May 2020)

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वक़्त का तुम… Waqt Ka Tum… by संदीप साइलस “दीप”

वक़्त का तुम
संदीप साइलसदीप

वक़्त का तुम दम भरते हो, वक़्त किसका है
इंतिज़ार करते रहते हो, की ख़त किसका है।

मौसम-ए-बहार की रोज़ तुम राह तकते हो
दरख़्तों से बातें करते हो, परिंदा किसका है।

मन में लिए इख़्लास, क्या-क्या सम्भाले हो
तन्हाइयों में डूबे रहते हो, आसरा किसका है

ये कशिश क्या कभी ले आएगी तुम्हारा प्यार
तारों को गिनते रहते हो, आसमाँ किसका है।

उनकी रूह को ताज़ा, रुख़्सार हँसी रखते हो
असास हैं मज़बूत, उन्हें एहसास किसका है।

यूँ बात-बात आब-ए-दीदा होते हो, बेज़ार हो
कौन पोंछेगा बहते अश्क़, रूमाल किसका है।

आँखों में दास्ताँ, शरीर, हरारत लिए फिरते हो
मोहब्बत भरे लब हैं ख़ामोश, जिगर किसका है।

ख़ंजर-ए-इश्क़, लमहा-बा-लमहा धार रखते हो
खुद ही तो लहू-लुहान रहते हो, दिल किसका है।

चलो बयाबान में चलो “दीप”, वतन किसका है
तेरा हुआ तो आएगा, वरना ख़याल किसका है।

(Written: Delhi; 10 April 2020)

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रब्ब की मर्ज़ी Rabb Ki Marzi by संदीप साइलस “दीप”

रब्ब की मर्ज़ी
संदीप साइलसदीप

वक़्त और शजर दोनो ही उतार देते हैं
लदे हुए ज़माने, ख़ामोश उतार देते हैं।

रब्ब की मर्ज़ी के आगे कौन खड़ा रहा
आसमानी फ़रमान कारवाँ उतार देते हैं।

अच्छे और बुरे का फ़र्क़ बेशक भूल गए
अज़ाब आते हैं तो शहंशाह उतार देते हैं।

ये ताज-ओ-तख़्त बहुत बेशक़ीमती हैं
वज़न नहीं संभला, तो होश उतार देते हैं।

आवाम के ज़ख़्म, किसी को दिखते नहीं
ये जब पकते हैं, सल्तनत उतार देते हैं।

मेरे दिल के दर्द, मेरी जाँ, कुछ ऐसे ही हैं
ये कलम से काग़ज़ पे, ख़ुदा उतार देते हैं।

तू नहीं मिलता तो दिल उदास सा रहता है
ज़मीन-ए-मोहब्बत हम धनक उतार देते हैं।

अपनी-अपनी रूह, ख़ुदाई से भर लो तुम
ज़ुल्मियों के लिबास भी ख़ुदा उतार देते हैं।

दरख़्त रखते हैं हरेक घोंसले को महफ़ूज़
दुआगो “दीप” रूहानियत को उतार लेते हैं।

(Written: Delhi; 17 April 2020)

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दिल निकाल के… संदीप साइलस “दीप” Dil Nikaal Ke… Sandeep Silas

दिल निकाल के…
संदीप साइलस “दीप”

दिल निकाल के रखता हूँ रोज़ तेरे सामने
मेहर की उम्मीद करता हूँ तुझसे तेरे सामने।

कभी वेद पढ़ता हूँ, तो कभी अज़ान गाता हूँ
कभी कबीर, कभी नानक होते हैं मेरे सामने।

नव-दुर्गा का अदब रखना है मुझे ता ज़िंदगी
इंजील-ए-ईसा को भी लाना है तेरे सामने।

ए इंसाँ तू क्यूँ छोड़ता जा रहा अपनी ज़मीं
तेरी पाकीज़गी को मुझे लाना है तेरे सामने।

ये सियासतें, गर्दिश में ले जा रहीं हैं तुझे हिंद
हज़ारों साल की तहज़ीब, देख है तेरे सामने।

ना सुन बुरा, ना कह बुरा, ना देख तू कुछ बुरा
बापू को भूलने से पहले, ज़रा रख उसे सामने।

नफ़रतें ना लाएँगी, अमन-ओ-चैन की दुनिया
हिट्लर भी गया था, अपनी ही गोली के सामने।

ना झूठ बोल, ना कर फ़रेब, तुझे मिली सल्तनत
कुदरत से ना खेल इंसाँ, पुतला है उसके सामने।

नहीं मानेगा तू, तो वो वापस ले लेगा तेरी साँस
कहते हैं वो मन का “दीप” देखता है अपने सामने।

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प्यास… Thirst by संदीप साइलस “दीप”


प्यास

संदीप साइलसदीप

दूर से प्यास बुझती, तो किसी को कहाँ लगती

पीपी के अश्क़ तू जी गया, प्यास कहाँ लगती।

वो जिसकी तलब थी, नहीं मिला, तो इश्क़ रहा

मिल गया होता, तो इश्क़ की आग कहाँ लगती।

तँहा ना हुए होते, बादसबा, सर्द कहाँ लगती

तसव्वुर में ना आते, जाँना की कशिश कहाँ लगती।

वो ग़र पास हुए होते, दिलतिशनगी, कहाँ लगती

तीरगी के आलम सिवा, ख़्वाबों में लौ कहाँ लगती।

शबहिज्र, शुक्रिया, नीमवा रोशनी कहाँ लगती

मेरी सूखी आँखो को, उनकी नमी कब कहाँ लगती।

वादावफ़ा निभाया होता, ये ख़लिश कहाँ लगती

वो जुदा ना हुआ होता, ख़ुदा की आस कहाँ लगती।

ज़ख़्मदिल लिए फिरता हूँ, अब दवा कहाँ लगती

कुछ रखे ज़माने के लिए, वरना नुमाईशें कहाँ लगती।

अब ना हसरतशाम, ना ख़्वाहिशों से हमें काम

कोई आए ना आए, अब खामोशी भी कहाँ लगती।

एक बेगाने की आसदीपक्यूँ रखते हो अपने दिल

ख़ुदा की बारगाह में आओ, यहाँ प्यास कहाँ लगती।

(Written: Delhi; 30 March 2020)

 

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