संदेसा Sandesa- Message to the Beloved by Sandeep Silas “deep “

Hi friends, announcing my latest book of poetry in Hindi-Urdu (Devanagari, a collection of 101 poetic offerings in ghazal, nazm, song, and muktak (free verse) format, published on 3rd January 2022. Like its title says it is a message to the beloved. When you read it you will feel like it’s your heart that is sending the message to your beloved. Many times  you’ll feel that the beloved is equated to God. That’s the beauty when poetry is written personally in complete surrender to your heartthrob, but gets universalised in the big world out there.

Love is a blessing, feel it in the verses of Sandesa!

It’s up there on Amazon Kindle!

Description

Sandesa, is a cry of deep love, it is not just a message, but a call to the beloved to come and be united with the lover. The lover speaks to his beloved in verse in different poetic formats, mainly ghazal, nazm and songs. Sandesa has emerged from the depths of heart, from the intense emotional upsurge not normally felt unless one is in complete surrender to his beloved.

Sandesa has captured all the moments those breathed life between conversations, feelings, touch and prayerful love. It is a masterpiece of poetic love, true to its core. Sandesa is an immortal offering to the beloved, whom the lover celebrates to the heavens. You will appreciate the structure each poetic presentation follows, feel the melody, the rhythm, experience the joy of love, the longing, the deep desire of the heart, the submission to God and the Divine Mother. The poet talks to God seeking His blessings to resolve the dilemma of the beloved. The beloved in Hindi-Urdu poetry is equated to God and God to the beloved. You will find the different schools of poetry writing in Sandesa; the Sufi way, the Radha-Krishna spiritual love, songs based in the melody of Ragas, and sometimes free verse that runs with a powerful force as a story with a message.

Sandesa, is a poetry lovers delight, a treatise of love. It is a conversation between two people in love, with deep longing in heart. It is not just that, it is an authentic love story in verse, soaked in romance and all the feelings of complete surrender in love. Such divine love is rare to be experienced in these days and most uncommon to be felt. It is spiritual and uplifting. Above all it is true.

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स्वीकार करो मेरी उपासना (Sweekaar Karo Meri Upaasna) by Sandeep Silas “deep”

स्वीकार करो मेरी उपासना

स्वीकार करो, मेरी उपासना
मेरी माँ, मेरी माँ।

मैं प्रेम का सागर लिए बैठा
हृदय में तुम्हारी लाडली है
मन में आस, मैं लिए बैठा
नैनन बसी हुई वो प्यारी है।

मैं मनोकामना, हूँ लिए बैठा
मेरी शक्ति तुम्हारी भक्ति है
मैं अँसूँअन धार, लिए बैठा
तेरी शरण, मेरी आसक्ति है।

स्वीकार करो, मेरी उपासना
मेरी माँ, मेरी माँ।

मैं अनकही बात लिए बैठा
तेरी बेटी ही मेरी दुलारी है
मैं क्षमा याचना लिए बैठा
वो मेरी, जन्मो से, रानी है।

मैं सबरी दुनिया छोड़ बैठा
बस उसकी मुझे लालसा है
मैं तेजोमय रूप लिए बैठा
उसकी मुझे बहुत तमन्ना है।

स्वीकार करो, मेरी उपासना
मेरी माँ, मेरी माँ।

हाथों में तस्वीर मैं लिए बैठा
एक उम्मीद तेरे दर लगाई है
रूह की सच्चाई, लिए बैठा
मैंने प्यार की लौ, लगाई है।

मैं माथे पे तिलक, लिए बैठा
तेरी छाप, नैनों में सजाई है।
तेरी दया की आस लिए बैठा
मैंने जीवन रंगोली सजाई है।

स्वीकार करो, मेरी उपासना
मेरी माँ, मेरी माँ।

(Written : Delhi; 6 September 2021; 2.12 pm to 2.28 pm first two stanzas; rest from 6.51 pm to 7.25 pm)

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लाया गेंदा के फूल, माँ (Laaya Genda Ke Phool Maa) by Sandeep Silas “Deep”

 

लाया गेंदा के फूल, माँ

लाया मैं गेंदा के फूल, माँ
एक लाल चुनरियाँ भी माँ।

लाया मैं गेंदा के फूल माँ
एक लाल चुनरिया भी माँ
हिया पूजा का थाल है माँ
करुणामई है तू, मेरी माँ।

हर साँस में तेरा नाम माँ
मेरी आस तुझ तक, माँ
क्या माँगू, तुझ से मैं माँ
बिन माँगे तू देती है माँ।

तेरे द्वार पर, आता हूँ माँ
अपना सर झुकाता हूँ माँ
दयौड़ी पे तेरी रोता हूँ माँ
एक ही दुआ रखता हूँ माँ।

आँसुओं की झड़ी से मैं माँ
तेरे चरणों को धोता हूँ माँ
कृपा करो मुझ पापी पे माँ
रहम की भीख मांगू मैं माँ।

एक सपना देखा है हमने माँ
तेरे मंदिर उसको लाया हूँ माँ
वर दे, उसका साथ मिले माँ
भर दे, अपने हर रूप से, माँ।

एक “दीप” लाया हूँ मैं माँ
तेरी बेटी का सिंदूर भी माँ
लाया मैं गेंदा के फूल, माँ
एक लाल चुनरियाँ भी माँ।

(Written: Goa; 15 October 2021; 4.29 pm to 5.21 pm)

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रिफ़ाक़त (Companionship) by संदीप साइलस “दीप”

 

रिफ़ाक़त
संदीप
साइलसदीप

सहरा के हौसले भी थे, तेरी हिफ़ाज़त भी थी
आबला-पा हुए ज़रूर, तेरी रिफ़ाक़त भी थी।

दर्द भरे नग़मों जैसी ज़ीस्त जिए शब-ओ-रोज़
परेशान रहे ज़रूर, मगर तेरी अक़ीदत भी थी।

सच तो बहुत दिखे, ज़माने ने बे-आबरू किया
सर उठा के हम तो जी गए, तेरी निस्बत भी थी।

हैरत हुई बहुत से क़रीबियों को देख के बे-पर्दा
तेरे बनाए हुए प्यालों में मगर आदमियत भी थीं।

ये सब क्यूँ तूने दिखला दिया मुझे इतनी जल्दी
अभी तो मेरे कदम उठे ही थे, मासूमियत भी थी।

कोई ख़ास मंजर ज़रूर तू मुझे दिखाना चाहता है
तमाम दुशवारियों तेरी रहम-ए-इल्तिफ़ात भी थी।

दिल दुनिया रौनक़-ए-बहार आए, तेरी ख़बर आए
दूर से साथ निभाने की क्या तेरी सिफ़ाक़त भी थी।

बहुत से लोग खो दिए मैंने, रहगुज़र चलते-चलते
सब कुछ साफ़-साफ़ कहने की मेरी आदत भी थी।

रंग लिए मैंने पैरहन, मुफ़्लिसी में तेरे नाम से पिया
तेरे “दीप” को तुझसे बेतहाशा मोहब्बत भी थी।

रिफ़ाक़त- companionship; सहरा- desert, wilderness; आबला-ए-पा -blisters of feet; अक़ीदत – faith, attachment; बे-आबरू – dishonour; निस्बत- relation; दुशवारियाँ-difficulties; इल्तिफ़ात- kindness; सिफ़ाक़त- culture; पैरहन- dress; मुफ़लिसी-poverty

(Written: Delhi; 19 May 2020)

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शौक़-ए-जीस्त Shauq-e-Zeest by संदीप साइलस “दीप”

शौक़-ए-जीस्त
संदीप साइलस “दीप”

तेरे शौक़-ए-जीस्त से भरा हूँ मैं
तेरी नज़रें इनायत को खड़ा हूँ मैं।

नौ-निहाल हुई दुनिया तेरी बरकत
तेरे सामने हाथ फैलाए खड़ा हूँ मैं।

कहते हैं तू सबका है दिल-निग़ार
तेरे दीदार को तरसता खड़ा हूँ मैं।

सुनते हैं तू दारा-दाता है, मसीहा है
एक साँस बदन में लिए खड़ा हूँ मैं।

तेरी आमद को तैय्यार हमेशा हूँ मैं
रौनक़-ए-इश्क़, रोशन खड़ा हूँ मैं।

तेरे चमन में ये कैसी शमशीर चली
इंसानियत की गुहार लिए खड़ा हूँ मैं।

बंद कर लीं हैं आँखें तेरे नुमाइंदों ने
इंसाँ के दिल का दर्द लिए खड़ा हूँ मैं।

हो गए हैं ख़ामोश तेरे बनाए हुए साज़
होठों पे हज़ारों नग़मे लिए खड़ा हूँ मैं।

इस अंधेरे को दूर, तो करना ही होगा
यक़ीन का “दीप” जलाए खड़ा हूँ मैं।

(Written: Delhi; 25 April 2020)

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रब्ब की मर्ज़ी Rabb Ki Marzi by संदीप साइलस “दीप”

रब्ब की मर्ज़ी
संदीप साइलसदीप

वक़्त और शजर दोनो ही उतार देते हैं
लदे हुए ज़माने, ख़ामोश उतार देते हैं।

रब्ब की मर्ज़ी के आगे कौन खड़ा रहा
आसमानी फ़रमान कारवाँ उतार देते हैं।

अच्छे और बुरे का फ़र्क़ बेशक भूल गए
अज़ाब आते हैं तो शहंशाह उतार देते हैं।

ये ताज-ओ-तख़्त बहुत बेशक़ीमती हैं
वज़न नहीं संभला, तो होश उतार देते हैं।

आवाम के ज़ख़्म, किसी को दिखते नहीं
ये जब पकते हैं, सल्तनत उतार देते हैं।

मेरे दिल के दर्द, मेरी जाँ, कुछ ऐसे ही हैं
ये कलम से काग़ज़ पे, ख़ुदा उतार देते हैं।

तू नहीं मिलता तो दिल उदास सा रहता है
ज़मीन-ए-मोहब्बत हम धनक उतार देते हैं।

अपनी-अपनी रूह, ख़ुदाई से भर लो तुम
ज़ुल्मियों के लिबास भी ख़ुदा उतार देते हैं।

दरख़्त रखते हैं हरेक घोंसले को महफ़ूज़
दुआगो “दीप” रूहानियत को उतार लेते हैं।

(Written: Delhi; 17 April 2020)

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प्यास… Thirst by संदीप साइलस “दीप”


प्यास

संदीप साइलसदीप

दूर से प्यास बुझती, तो किसी को कहाँ लगती

पीपी के अश्क़ तू जी गया, प्यास कहाँ लगती।

वो जिसकी तलब थी, नहीं मिला, तो इश्क़ रहा

मिल गया होता, तो इश्क़ की आग कहाँ लगती।

तँहा ना हुए होते, बादसबा, सर्द कहाँ लगती

तसव्वुर में ना आते, जाँना की कशिश कहाँ लगती।

वो ग़र पास हुए होते, दिलतिशनगी, कहाँ लगती

तीरगी के आलम सिवा, ख़्वाबों में लौ कहाँ लगती।

शबहिज्र, शुक्रिया, नीमवा रोशनी कहाँ लगती

मेरी सूखी आँखो को, उनकी नमी कब कहाँ लगती।

वादावफ़ा निभाया होता, ये ख़लिश कहाँ लगती

वो जुदा ना हुआ होता, ख़ुदा की आस कहाँ लगती।

ज़ख़्मदिल लिए फिरता हूँ, अब दवा कहाँ लगती

कुछ रखे ज़माने के लिए, वरना नुमाईशें कहाँ लगती।

अब ना हसरतशाम, ना ख़्वाहिशों से हमें काम

कोई आए ना आए, अब खामोशी भी कहाँ लगती।

एक बेगाने की आसदीपक्यूँ रखते हो अपने दिल

ख़ुदा की बारगाह में आओ, यहाँ प्यास कहाँ लगती।

(Written: Delhi; 30 March 2020)

 

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रब्ब को कहा होता… संदीप साइलस “दीप”

रब्ब को कहा होता…
संदीप साइलस “दीप”

दर्द-ए-दिल को ए इंसां, तूने रब्ब को कहा होता
जिसका अक्स तू जमीं पे है, उसको कहा होता।

शिकस्ताह हाल फिरता है, एतबार किया होता
जिसने तुझे बनाया, उस रब्ब को पुकारा होता।

दस्त-ए-साक़ी ना लाए, वो जाम पिया होता
चाक-जिगर को अपने, ईमान से सिया होता ।

अह्ल-ए-किताब का कलाम, जो तूने सुना होता
रूह का परिंदा तेरा, रब्ब का नाम जिया होता।

चारागर का हक़ तूने, जो ख़ुदा को दिया होता
दुआ ने हर मर्ज़ में, दवा का काम किया होता।

कारवाँ-ए-हयात पे इतना फ़ख़्र ना किया होता
कभी तो रब्ब का भी, तूने एहतिराम किया होता।

इब्तिदा तो कर ली, तू इंतिहा को जिया होता
ख़ुदा की मोहब्बत का भी पैग़ाम लिया होता।

हद पे तू पहुँचता रहा, इख़्लास भी किया होता
जाने-अनजाने कभी वादा-ए-वफ़ा किया होता।

सामने गर तू होता, मैं तुझ को ही जिया होता
तू इश्क़ मेरा होता, मैं “दीप” तेरा ही होता।

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तू लौ ख़ुशनुमा…by संदीप साइलस “दीप” Tu Lau Khushnuma…by Sandeep Silas “deep”

तू लौ ख़ुशनुमा…

संदीप साइलसदीप

तू लौ ख़ुशनुमा, मैं पतंगा तेरा

तुझको जियूँ तो, जल जाऊँ मैं ।

ये क्या राबता, कैसा है मेला

तुझको छू लूँ तो, खिल जाऊँ मैं ।

तू मदहोश है, मेरा खोया पिया

तुझको देखूँ तो, भर जाऊँ मैं ।

मेरा दिल तो तेरा, घर बन गया

तुझको पाऊँ तो, बस जाऊँ मैं ।

तेरा चर्चा रहा, वो ज़माना तेरा

गहमा-गहमी हो, तो डर जाऊँ मैं ।

मैं तो आयत तेरी, तू ईसा है मेरा

तुझको मिलने को, ललचाऊँ मैं ।

हर राह तेरी, हर जहां है तेरा

ले चला तू मुझे, कहाँ को जिया ।

ज़ुबान ने मेरी, आज शिकवा किया

ऐसा मिलना हुआ, तो मर जाऊँ मैं ।

तू लौ ख़ुशनुमा, मैं पतंगा तेरा

तुझको जियूँ तो, जल जाऊँ मैं ।

ये क्या राबता, कैसा है मेला

तुझको छू लूँ, तो खिल जाऊँ मैं ।

TU LAU KHUSHNUMA…

Sandeep Silas “deep”

Tu lau khushnuma, main patanga tera

Tujhko jiyun to, jal jaun main

Ye kya raabta, kaisa hai mela

Tujhko chhuu lun to, khil jaun main

Tu madhosh hai, mera khoya piya

Tujhko dekhun to, bhar jaun main

Mera dil to tera, ghar ban gaya

Tujhko paun to, bas jaun main

Tera charcha raha, wo zamana tera

Gehma-gehmi ho, to dar jaun main

Main to aayat teri, tu Isaa hai mera

Tujhko milne ko, lalchaun main

Har raah teri, har jahaan hai tera

Le chala tu mujhey, kahan ko jiya

Zubaan ne meri, aaj shikwa kiya

Aisa milna hua to, mar jaun main

Tu lau khushnuma, main patanga tera

Tujhko jiyun to, jal jaun main

Ye kya raabta, kaisa hai mela

Tujhko chhuu lun to, khil jaun main

 

(Written: Delhi; 29 November 2019; 10.10 pm -10.45 pm)

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इतना भी क्या …? ITNA BHI KYA…? WHAT IS SO MUCH…? By Sandeep Silas ‘deep’

इतना भी क्या…? ITNA BHI KYA…?

(WHAT IS SO MUCH…?)

Sandeep Silas ‘deep’

इतना भी क्या की ख़ंजर उठा लिया ?

मुस्कुरा के भी तो जान ले लेते हैं लोग ।

ऐसा भी क्या की प्यालाज़हर ला दिया?

राज़ छुपाए भी दैरहरम चले जाते हैं लोग ।

इतना भी क्या की खुदा को भुला दिया ?

ता ज़िंदगी दुआगो भी तो रह लेते हैं लोग ।

ऐसा भी क्या की कलामग्रंथ जला दिया ?

आयतों में भी तो सुकून तलाश लेते हैं लोग ।

इतना भी क्या की वादावफ़ा से पर्दा किया ?

अदावत को दिल रख के भी रह लेते हैं लोग ।

ऐसा भी क्या की राहरंजिश ही लिया?

रिश्तों का वज़न भी तो उठा लेते हैं लोग ।

इतना भी क्या की चाँद से बैर ही किया ?

दुश्मनी में भी दिल लगा लेते हैं लोग ।

ऐसा भी क्या की रुख़ पे इबलीस उतार लिया ?

पेशानी पे तो नूर की ख़्वाहिश रखते हैं लोग ।

इतना भी क्या की कोईदीपके खून का प्यासा जिया?

लहू पी के भी इंसान बने रहते हैं लोग ।

Itna bhi kya ki khanzar utha liya?

Muskura ke bhi to jaan le lete hain log

(What is so much that you picked up a dagger?

People take a life with a smile too)

Aisa bhi kya ki pyala-e-zahar la diya?

Raaz chhupaye bhi dairo-haram chaley jaatey hain log

(What is that the cup of poison was offered?

People hide secrets and still bow in a temple & mosque)

Itna bhi kya ki Khuda ko bhula diya?

Ta zindagi duago bhi to reh lete hain log

(What is so much that you even forgot the existence of God?

People live their entire lives immersed in prayer too)

Aisa bhi kya ki kalaam-o-granth jala diya?

Aayaton mein bhi to suquun talaash lete hain log

(What is that the Holy Scriptures were burned?

People find their peace in the verses too)

Itna bhi kya ki wada-e-wafa se purdah kiya?

Adaavat ko dil rakh ke bhi reh lete hain log

(What is so much that you forgot the promises made in faith?

People can hide malice in the folds of their hearts and live)

Aisa bhi kya ki raah-e-ranjish hi liya?

Rishton ka wazan bhi to uthaa lete hain log

(What is that you took to the road of enmity?

People carry the burden of relationships too)

Itna bhi kya ki chand se bair hi kiya?

Dushmani mein bhi dil laga lete hain log

(What is so much that you have ill-will for the Moon?

People engage their hearts in hostility too)

Aisa bhi kya ki rukh pe Iblis utaar liya?

Peshani pe to noor ki khwaahish rakhtey hain log

(What is that you fused your face with the Satan’s?

People actually wish for divine light to glow on their face)

Itna bhi kya ki koi “deep” ke khoon ka pyasa jiya?

Lahu pee ke bhi insaan bane rehtey hain log

(What is so much that someone lives thirsty for “deep’s” blood?

People drink blood and yet pretend to be human)

(Written: Delhi; 12 October 2019; 6.00 am to 7.07 a.m.)

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